कविता - 1
मुझे साथ दो.
मुझे
साथ दो मेरे साथी
मुझे हाथ दो
मेरे साथी
मैं इस धरती पर स्वर्ग बसाउँ
मैं इस धरती पर रामराज्य लाउँगा
वे सर उठाये चले आ रहे हैं
पशु से बदतर पाषाणी चले आ रहे हैं
नजर
उठा के देखो तो सही
घटायें तम की घनी छा रही है
साँसों मे घुटन बढती जा रही है
साथ को साथ दो मेरे
साथी
साज पर आवाज दो मेरे साथी
मैं इस धरती पर सूर्य बनकर दमकुंगा
मैं पाषाणी उनकी मोमों मे
ढल दूंगा
जिन्दगी से मौत दूर कितनी
मौत से दूर कितनी जिन्दगी
यही कुछ
दूर है, ना कि
वही कुछ
दूर है सिर्फ़
सांसों का
कोरा क्रमसंचय है
मुझको ये
सांसें दे दो साथी
मुझको ये
सांसें दे दो साथी
मैं प्रचण्ड प्रलय बनकर गरजूंगा
मैं नस-नस
में उनकी डर भर दूंगा
जब भी आतीं हैं कुछ ऎसी रातें
मिलकर एक
होते हैं ऎसे
जैसे नीर
क्षीर में एक दूसरे
आज किसी
ने आँचल थामा है
आज किसी ने नजर
उठाया है
\
उठती नजर
उठा ही दूंगा
उठते हाथ
मरोड ही दूंगा
मुझे साथ
दो मेरे साथी
मुझे
हाथ दो मेरे
साथी
मुझकॊ उन हाथॊं की
जरुरत है
मुझको उस हाथॊं की जरुरत है
मुझे खून दो
मेरे साथी
मुझे साथ
दो मेरे साथी
(2)
बस अपना एक मुस्कुराना है
पवन
कह दो हर
कली से
कि वह तैयार
रहे
घोर घमण्ड
कर तूफ़ान आने वाला है
गगन में घोर
काले बादल घिरेगें
कौन जाने
कब,दामिनी-कामिनी का होगा नर्तन
कड़क-कड़क कर,चमक-चमक कर वे
भरना चाहेगीं
डर नस-नस में
पर इससे तुझे
क्या ?
आती तो रहेगीं
हरदम घड़ियाँ तम की
और कभी मिलेगा मिलिन्द
आसक्त रक्त का
खिल सर कंटकों
के बीच मुस्कुराना है
जिन्दगी में
अपना बस,एक मुस्कुराना है
(3)
जिन्दगी भी मुस्कुरा देगी
प्रीत के गीत मुझे दे दो
तो,मैं उम्र भर गाता रहूँ
प्रीत ही मुझे दे
दो तो
मैं जिन्दगी भर
संवारता रहूँ
जब मैं तुम्हारी सरहद में आया था
याद करूं तो कुछ याद न आया था
एक अजब खामोशी व खुमारी थी
जो मुझ पर अब तक छाये
है
खामोशी के राज मुझे
दे दो
कि मैं चैन की बंसी
बजाता रहूँ
गीत नये-नये गाता रहूँ
गीत नये-नये गुनगुनाता रहूँ
तुम
तभी से
अपने हो
जब चांद तारे भी
न थे
ये जमीं आसमान भी न थे
तुम तभी से साथ हमारे थे
गीतों के बदले जिन्दगी
भी मांग लोगी
तो मुझे तनिक भी
गम न रहेगा
क्योंकि मुझे मालुम है कि
गीतॊं के बहाने
नयी जिन्दगी लेकर
तुम द्वार मेरे जरुर आओगी
(4)
अधरों पर लिख दो
इन अधरों
पर लिख दो
एक सुहाना
सा नाम
हो ना जाये
अनबिहायी
पीड़ा …………. बदनाम
सपनॊं ने नयनों को नीर ही दिया है
चंदा ने चकोरी कॊ पीर ही दिया है
वेदना है मीरा तो मरहम है श्याम
इन अधरों पर लिख दो
सुन्दर सा एक नाम
देखेंगी अलसाई रत जगी अखियां
भुनसारे पनघट पर छेड़ेंगी सखियां
बार-बार पूछेगी सजना का नाम
इन अधरों पर लिख दो
सुहाना
सा एक नाम
(5)
पग-पग दीप जलाये हैं
पग-पग दीप जलाये हैं
फिर भी ठोकर खा ही जाती हूँ
ये पैंजन सारे की सारे भेद
पल भर में खोल जाते हैं
कहा कई है बार नटवर से
कि इतनी रात
बीते
न छेड़ा कर तान अपनी
‘ कि मैं हो जाऊँ अधीर,बावली
कालिंदी के तट पर
न जा किस झुरमुट में
छिपकर करते आँख मिचौनी
मालुम कितनी व्याकुल होती हूँ मैं
और भर आते नयना पलभर में
फिर चुपके - चुपके
आकर
मुझको वे बांहो में भर लेते
सहमी-सहमी सी रह जाती मैं
सारा की सारा गुस्सा पीकर
बाँहों के बंधन का सुख
कितना प्यारा-प्यारा तू, क्या जाने
पहरे बीत जाती पल
में
और मन ही मन रह जातीं
कितनी ही सारी बातें
सखी-य़े दीपावलियाँ
कितनी प्यारी-प्यारी
न जाने कितना तम हर लेती
हैं
ऎसे ही उस नटवर की मधुर स्मृति
कितने अलौकिक स्वपन दिखा जाती है
फिर समझ नहीं मुझको ये पड़ता है
ये जग मुझे क्यों बावरी-बावरी कहता है
(6).
जल जल दीप जलाए सारी रात
जल जल दीप जलाये सारी
रात
हर गलियाँ सूनी सूनी
हर छोर अटाटूप अंधेरा
भटक न जाये पथ में
आने वाला हमराही मेरा
झुलस- झुलस दीप जलाये सारी रात
घटायें जब घिर-घिर आती
मेरा मन है घबराता
हा-दिखता नहीं कोई सहारा
क्षित्तिज मे आँख लगाये
हर क्षण तेरी इन्तजारी में
सिसक-सिसक दीप जलाये सारी
रात
आशाओ की पी पीकर खाली प्याली
ये जग जीवन रीता है
ये जीवन बोझ कटीला है
राहों के शूल कटीले है
तिस पर यह चलता दम भरत्ता है
तड़फ़ तड़फ़्र दीप जलाये सारी रात
लौ ही दीपक का जीवन
स्नेह में ही स्थिर जीवन
बुझने को होती है रह रह
तिस पर आँधी शोर मचाती
एक दरस को अखिंयां अकुलाती
जल जल दीप जलाये
सारी रात
(7)
दीपक
माटी का
तुम
हो सोने की वाटिका
तो मैं हूँ नन्हा दीपक माटी का
तुम
प्रभात के साथ मिल
अलख जगाने आयी हो
जिसके रव
में कोई
कवि रोता है या हंसता है
मेरा अस्ताचल का साथ
मानो भारी निद्रा लाया है जिसका कण कण भी
आँखों में आंजे सोता है
दुनियां
भी कितनी बौराई है
या फिर कोई
पागलपन है
कोई कहता मिट्टी सोना हो गया
कोई कहता सोना मिट्टी हो गया
यदि ये अन्तर एकाकी हो जाये
तो दुनियां निर्विकार हो जाये
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