Thursday 18 April 2013




  श्री रामजन्मोत्सव.


सारे जगत के लिए यह सौभाग्य का दिन है; क्योंकि अखिल विश्व के अधिपति सच्चिदानदघन श्री भगवान इसी दिन दुर्दान्त रावण के अत्याचार से पिडित पृथ्वी को सुखी करने और सनातन धर्म की मर्यादा की स्थापना के लिए मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में प्रकट हुए थे.

’’दशाननवधार्थाय धर्मसंस्थापनाय    
दानवानां विनाशाय दाइत्यानां निधनाय च
परित्राणाय साधूनां जातो रामः स्वयं हरिः

महाकवि बाल्मीक ने रामजन्म के विषय में यह कहते हुए लिखा है-
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां समत्ययुः
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ
नक्षत्रेSदितिदेवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु
ग्रहेषु कर्कटॆ लग्ने वाक्पताविन्दुना सह
“प्रोद्यमाने जगन्नातं सर्वलोकनमस्कृतम
कौशल्याजनयद रामं दिव्यलक्षणसंयुत” ( अष्टादशः सर्गः-८-९-१०)

यज्ञ –समाप्ति के पश्चात जब छः ऋतुएं बीत गयी, तब बारहवें मास में चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौसल्यादेवी ने दिव्य लक्षणॊं से युक्त सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया. उस समय( सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र) ये पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे//बाल्मीक रामायण-अष्टादशः सर्गः श्लोक-८-९-१०).
इनके जन्म के समय गंधर्वों ने मधुर गीत गाए. अप्सराओं ने नृत्य किया. देवताओं की दुन्दुभियाँ बजने लगी तथा आकाश से फ़ूलों की वर्षा होने लगी. अयोध्या में बहुत बडा उत्सव हुआ. मनुष्यों की भारी भीड एकत्र हुई. गलियाँ और सडकें लोगों से खचाखच भरी थीं. बहुत-से नट और नर्तक वहाँ अपनी कलाएँ दिखा रहे थे. वहाँ सब ओर गाने-बजानेवले तथा दूसरे लोगों के शब्द गूँज रहे थे.दीन-दुखियों के लिए लुटाए गये सब प्रकार के रत्न वहाँ बिखरे पडॆ थे. राजा दशरथ ने सूत, मागध और वन्दीजनों को देने के योग्य पुरस्कार दिये तथा ब्राह्मणॊं को धन एवं सहत्रों गोधान प्रदान किये. ग्यारह दिन बीत जने पर महाराज ने बालकों का नामकरण-संस्कार किया. उस समय महर्षि वसिष्ठ ने प्रसन्नता के साथ सबके नाम रखे. उन्होंने ज्येष्ठ पुत्र का नाम “राम” रखा. कैकेयीकुमार का नाम भरत तथा सुमित्रा के एक पुत्र का नाम लक्ष्मण और दूसरे का नाम शत्रुघ्न निश्चित किया. इस अवसर पर राजा ने ब्राहमणॊं, पुरवासियों तथा जनपदवासियों को भोजन भी करवाया.(बाल्मीकरामायण-श्लोक 17-से23)
चूंकि वाल्मीकजी, महाराज दशरथ के समकालीन थे, अतः उन्होंने अपनी रामायण में आँखों देखा हाल का वर्णण किया था.
राम-भक्त तुलसीदास जी ने भी इस अवसर पर सुंदर भावाभिव्यक्ति दी. उन्होंने लिखा है

“नौमी तिथि मधु मास पुनीता* सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता
मध्य दिवस अति सीत न घामा*    पावन काल लोक विश्रामा
सीतल मंद सुरभि बह बाऊ*      हरसित सुर संतन मन चाऊ
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा*  स्रवहिं सकल सरिताSमृतधारा
सो अवसर बिरंचि जब जाना*   चले सकल सुर साजि बिमाना
गगन बिमल संकुल सुर जूथा*       गावहिं गुन गंधर्ब बरुथा.
बरषहिं करहिं नाग मुनि देवा*बहुविधि लावहिं निज निज  सेवा”

दोहा- सुर समूह बिनती कर, पहुँचे निज निज धाम  
जगनिवास प्रभु प्रगटॆ,   अखिल लोक बिश्राम//१९१//बालकाण्ड//

भगवान के अवतार लेने के समय पवित्र चैत्र मास के शुक्लपक्ष में नवमी तिथि प्रभु का प्रिय अभिजित नक्षत्र था तथा नवम दिवस(अर्थात लगभग एक बजे) न अति शीत और न विशेष सूर्य की तपन, बल्कि संसार को विश्राम देने वाला शुभ समय था. शीतल मंद और सुगन्धित हवा चल रही थी. देवता हर्षित थे, संतो के मन मे चाव था. वन फ़ूले हुए थे. पर्वत-समूह, मणियों से युक्त हो रहे थे और संपूर्ण नदियाँ अमृत की धारा बहा रही थी. जब ब्रह्मा ने वह समय जाना तब सब देवता विमान सजाकर चले. निर्मल आकाश देवताओं के समूह से पूर्ण हो गया. गंधर्व गुणगान करने लगे. सुन्दर अंजुलियों मे सजाकर फ़ूल बरसाने लगे. आकाश में घनघोर दुन्दुभी बजने लगी. नाग, मुनि और देवता स्तुति करने लगे और बहुत प्रकार से अपनी-अपनी सेवा अर्पित करने लगे. इस प्रकार देव-समूह नाना प्रकार से विनती कर अपने-अपने स्थानों को चले गये और  सभी अखिल ब्रह्माण्ड के विश्रामदाता तथा जगन्नियता विश्वव्यापक भगवान का प्राकट्य हुआ.

रामभक्त तुलसीदास जी ने अपने प्रभु के प्रकट होने पर जो छंदमय स्तुति की है, अत्यंत ही रोचक और सरल भाषा में व्यक्त की है कि इसे गाते समय तन पुलकित हो उठता है और ऎसा लगता है कि हम श्रीरामजी को अपने सामने उपस्थित पा रहे है. तन में रोमांच हो आता है और आँखों से प्रेमाश्रु बह निकलते है.
“भए प्रकट कृपाला, दीनदयाला कौसल्या   हितकारी
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रुप  बिचारी
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,निज आयुध भुज चारी
भूषन बनमाला,  नयन  बिसाला,   सोभासिंधु खरारी*
कह दुइ कर जोरी,अस्तुति तोरी,केहि विधि करौं अनंता
माया गुन ग्यानातीत अमाना,बेद  पुरान     भनंता
करुना सुख सागर,सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,भयउ प्रगट श्रीकंता*
ब्रह्मांड निकाया,निर्मित माया,रोम रोम प्रति वेद कहैं
मम सो उर बासी,यह उपहासी,सुनत धीर मति थिर न रहै
उपजा जब ग्याना,प्रभु मुस्काना,चरित विधि कीन्ह चहै
कहि कथा सुहाई,मातु बुझाई,जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै*
माता पुनि बोली,सो मति डोली,तजहु तात यह रुपा
कीजै सिसुलीला,अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा
सुनि बचन सुजाना,रोदन ठाना ,होइ   बालक सुरभूपा
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,ते न परहिं भव कूपा*

दोहा-बिप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह  मनुज    अवतार.
  निज इच्छा निमित तनु, माया गुन गो पार//१९२//बालकाण्ड//
श्रीराम केवल हिन्दुओं के ही “राम” नहीं है, वे अखिल विश्व के प्राणाराम हैं. भगवान श्रीराम को केवल हिन्दूजाति की संपत्ति मानना उनके गुणॊं को घटाना है, असीम को सीमाबध्द करना है. विश्व-चरारर में आत्मरुपसे नित्य रमण करनेवाले और स्वयं ही विश्वचराचर नारायण किसी एक देश या व्यक्ति की वस्तु कैसे हो सकते हैं ?.वे सबके हैं, सबमें हैं, सबके साथ सदा संयुक्त हैं और सर्वमय हैं. जो कोई भी जीव उनकी आदर्श मर्यादा-लीला-उनके पुण्यचरित्र का श्रद्धापूर्वक गान, श्रवन और अनुकरण करता है, वह पवित्रहृदय होकर परम सुख को प्राप्त कर सकता है. श्री राम के समान आदर्श पुरुष, आदर्श धर्मात्मा, आदर्श नरपति, आदर्श मित्र, आदर्श भाई, आदर्श पुत्र, आदर्श गुरु, आदर्श शिष्य, आदर्श पति, आदर्श स्वामी, आदर्श सेवक, आदर्श वीर, आदर्श दयालु, आदर्श शरणागत-वत्सल, आदर्श तपस्वी, आदर्श सत्यवादी, आदर्श दृढप्रतिज्ञ तथा आदर्श संयमी और कौन हुआ है ?.
जगत के इतिहास में श्रीरामकी तुलना में एक श्रीराम ही हैं. साक्षात परमपुरुष परमात्मा होने पर भी श्रीराम ने जीवों को सत्पथ पर आरुढ कराने के लिए ऎसी आदर्श लीलाएँ कीं, जिनका अनुकरण सभी लोग सुखपूर्वक कर सकते हैं. उन्हीं हमारे श्रीरामजी का पुण्य जन्मदिवस चैत्र शुक्ल नवमी है.
इस सुअवसर पर सभी लोगों को, खासकर उनको, जो श्रीराम को साक्षात भगवान और अपने आदर्श पूर्वपुरुष के रुप में अवतरित मानते हैं, श्रीरामजीका पुण्योत्सव मनाना चाहिए. इस अवसर  का प्रधान उद्देश्य होना चाहिए श्रीरामजी को प्रसन्न करना और श्रीराम के आदर्श गुणॊं का अपने में विकास कर श्रीरामकृपा प्राप्त करने का अधिकारी बनना. अतएव विशेष ध्यान श्रीरामजी के आदर्श चरित्र के अनुकरण पर ही रखना चाहिए.





No comments:

Post a Comment